भारत में रोजगार सृजन
भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिक
रोजगार सृजन: सरकारी प्रयास
तकनीकी सुधार निधि योजना तथा कपास के लिए तकनीकी मिशन
संबंधित संसाधन
भारत में रोजगार सृजन
गरीबी-निरोधक रणनीति के अंतर्गत व्यापक तौर पर गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन के कार्यक्रम आते हैं। जिनमें से कई तो सालों से चले आ रहे हैं जिसने रोजगार सृजन, उत्पादक संपत्ति का सृजन एवं तकनीकि तथा उपक्रमी कुशलता को काफी मजबूत बनाया है। उनसे गरीबों की आमदनी बढ़ी है।

इन योजनाओं के अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों को दिहाड़ी रोजगार तथा स्व-रोजगार दोनों ही उपलब्ध कराए जाते हैं। वर्ष 1998-99 से चलने वाले कई तरह के गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार सृजन कार्यक्रमों को व्यापक रूप से दो वर्गों में रखे गए हैं-

स्व-रोजगार योजना
दिहाड़ी रोजगार योजना
बेहतर कामयाबी हासिल करने के लिए वित्तीय सहायता एवं संगठनात्मक ढांचों को भी विवेकपूर्ण बनाया गया है। ये कार्यक्रम मुख्य रूप से गरीबी उन्मूलन के लिए हैं जो आमतौर पर टिकाऊ रोजगार सृजन में सहायक नहीं हैं।

भारत में असंगठित क्षेत्र के श्रमिक
असंगठित क्षेत्र के श्रमिक’ का अर्थ ऐसा व्यक्ति है जो सीधे तौर पर या किसी संस्था के जरिए अथवा अनुबंध पर मजदूरी या आमदनी के लिए काम करता है, या वह व्यक्ति जो अपने घर अथवा किसी भी कार्यस्थल, खेत या सार्वजनिक स्थलों पर स्वयं काम करता है या स्व-नियुक्त है और उसे ईएसआईसी अधिनियम एवं भविष्य-निधि अधिनियम (पीएफ), निजी बीमा तथा जीवन बीमा की पेंशन योजना के तहत मिलने वाली सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है या वह अधिकारी वर्गों द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जाने वाली अन्य सुविधाओं से वंचित है।

रोजगार सृजन: सरकारी प्रयास
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एनआरईगीएस) ग्रामीण गरीबों को 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देता है। इस तरह का सामाजिक सुरक्षा प्रयास विश्व में अनोखा है। इस योजना के तहत आने वाले जिलों की संख्या 200 से बढ़ाकर 614 कर दी गई है। यह अप्रैल 2008 से प्रभावी है।
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआइसी) को संशोधित कर लघु एवं ग्रामीण उद्योगों के जरिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन करने के लिए सुनिश्चित किया गया है।
असंगठित क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय उद्यम आयोग की स्थापना एक परामर्शी निकाय के रूप में की गई है। खासतौर से यह ग्रामीण इलाकों के अनौपचारिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर टिकाऊ रोजगार अवसरों के सृजन करने के लिए उद्यमों के उत्पादन में सुधार लाने की निगरानी करता है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम में किए गए वादे के अनुरूप असंगठित क्षेत्र में राष्ट्रीय उद्यम आयोग की स्थापना किया जाना है, जो उभरते वैश्विक वातावरण में इस क्षेत्र में प्रतियोगिता बढ़ाने के लिए समुचित उपाय करने की अनुशंसा करेगा तथा इस क्षेत्र को ऋण, कच्चा माल, आधारभूत संरचना, तकनीकी सुधार एवं विपणन जैसे संस्थागत ढांचों से जोड़ेगा। अनौपचारिक क्षेत्र के लिए कौशल विकास के सही उपाय भी आयोग के विचाराधीन हैं।

तकनीकी सुधार निधि योजना तथा कपास के लिए तकनीकी मिशन
करों में राहत के साथ ही बड़ा पैकेज प्रदान किया गया। देश में विकास तथा अधिकतम मूल्य परिवर्धन की प्राप्ति के लिए शुल्क की संरचना को विवेकपूर्ण बनाया गया। ‘तकनीकी सुधार निधि योजना एवं कपास के लिए तकनीकि मिशन’ जैसी योजना का उद्देश्य एवं व्यय उद्योग को उन्नत बनाना तथा गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। ऋण संबंधित पूंजी पर 10 फीसदी के अतिरिक्त अनुदान के परिणामस्वरूप तकनीकी सुधार फंड योजना के जरिए निवेश की राशि बढ़कर 1300 करोड़ (2003-04) से 20,000 करोड़ रुपए (2006-07) के करीब हो गई थी।

आधारभूत संरचना को सुदृढ़ करने के लिए ‘एकीकृत वस्त्र पार्क योजना’ की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत 40 एकीकृत वस्त्र पार्कों की स्थापना का प्रस्ताव रखा है। कपड़ों के लिए तकनीकी मिशन का क्रियान्वयन 11वीं पंचवर्षीय योजना में किया जाएगा।

राष्ट्रीय पटसन बोर्ड (National Jute Board)
कच्चे पटसन की न्यूनतम कीमत को 890 रुपये प्रति क्विंटल (2004-05) से बढ़ा कर 1250 रुपये (2008-09) कर दिया गया था। मांग की पर्याप्तता को सुनिश्चित करने के लिए चीनी तथा अनाजों की आवश्यक पैकेजिंग स्तर को बढ़ाया गया है।

पटसन की मांग बढ़ाने के लिए तथा इसके उत्पादकों के हितों की सुरक्षा के लिए पहली बार एक व्यापक राष्ट्रीय पटसन नीति की घोषणा की गई है। भारतीय पटसन निगम को पुनर्गठित किया गया है। पटसन क्षेत्र के कई संगठनों के क्रियाकलापों में एक प्रभावी तालमेल बनाने के लिए पटसन तकनीकी मिशन की स्थापना की गई है।

स्रोत: राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम,कार्यान्वयन स्टेशन